Friday, 7 July 2017

Tere Bin




तेरे बिन

पहले सा हसीन है हर मंजर अब भी
पहले जैसे ही हैं दिन रात तेरे बिन
पर एक कसक सी है दिल में हर पल
आ सुन क्या है, मेरे दिल के हालात, तेरे बिन।

रहती हूँ खोयी-खोयी सी तेरी यादों में कहीं
ना है होंठों को मुस्कुराने की, इज़ाज़त तेरे बिन 

छूकर गुज़र गया तेरा साथ , एक हसीं ख्वाब की तरह
अब सिर्फ हवाएँ करती हैं मुझसे शरारत तेरे बिन।

नज़रें टिकी रहतीं हैं कैलेंडर पर हर पल
बरस जैसा है गुज़रता , हर दिन तेरे बिन
चुभती है घड़ी की सुईयां दिल में कांटे बनकर
क्योंकि कम्बख्त वक़्त भी तो नहीं कटता तेरे बिन।

उलझ जाती हूँ ख्यालों के उधेड़बुन में कभी
कभी ये तन्हाई कहर ढाती है तेरे बिन
कोसों का है फासला, आंखों से नींद का
बिन सोये कईं रातें गुज़र जाती है तेरे बिन।


खिलती हैं कलियाँ, यहाँ भी गुलिस्ताँ में
पर नहीं कोई भी मंज़र, मनभावन तेरे बिन
यूँ तो होती है आज भी, बरसात वैसे ही झूमकर
पर मुझे कहाँ भिगो पाता है ये सावन तेरे बिन


रहती है एक नाकाम सी कोशिश , तुझे ना याद करने की
तभी साथ बिताया हर लम्हा, आँखों में घूम जाता है तेरे बिन 
वैसे तो कुछ भी हसीन नहीं है , यहाँ अरसों से
बस कभी कोई प्यारा सा सपना पलके चूम जाता है तेरे बिन। 

आईने से रूबरू होने का सिलसिला अब कहाँ
होती है दीवारों,तस्वीरों और पर्दों से बात तेरे बिन
बस तेरा ही अक्स रहता है हर पल ज़हन में
खुद से कहाँ होती है अब मुलाकात तेरे बिन।

रहता है इंतज़ार बस तेरे दीदार का
मिलन की आस का दिया जला लेती हूँ तेरे बिन
नहीं हैं निशाँ और किसी रौशनी का
तेरे साथ होने का झूठा एहसास खुदको
दिला देती हूँ तेरे बिन।


तू है तो धड़कता है , ये दिल भी वक़्त पर
नहीं तो रुक जाती है , इसकी हरकत तेरे बिन
तुझसे ही है मेरा अस्तित्व, मेरा वजूद और मैं
वरना नहीं है मुझे , जीने की हसरत तेरे बिन।

यूँ तो मौसम आते हैं अब भी बहारों के
पर कोई मौसम कहाँ है भाता तेरे बिन
हो गयी है इंतहा मेरे इंतज़ार की कुछ यूँ
कि अब तो जिया भी नहीं जाता तेरे बिन।

तेरे बिन ......



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