मुझे हक़ है
ना मंज़िल अलग है , ना राहें अलग है
बस हमारे लिए, तुम्हारी निगाहे अलग है
और इन्ही निगाहों में मेरी ज़मी और फलक है
तूने प्यार दिया मुझे इतना की अभी तक
मेरी सांसों में तेरी सांसों की महक है
नहीं इल्तजा खुदा से मुझे कुछ
मुझे रात दिन बस तेरी ही तलब है
नहीं बोझ मेरे लिए प्यार ये तेरा
देख मेरी आँखों में तेरी ही चमक है
बातें हैं तेरी इतनी प्यारी
जैसे मेरी चूड़ियों की खनक है
जानती हूँ ये ज़िन्दगी है ऐसी
जैसे कोई लम्बी सड़क है
पर तू जो है साथ मेरे
तो ज़िन्दगी जीने का हक़ मुझे है
--------- रमा शर्मा
ना मंज़िल अलग है , ना राहें अलग है
बस हमारे लिए, तुम्हारी निगाहे अलग है
और इन्ही निगाहों में मेरी ज़मी और फलक है
तूने प्यार दिया मुझे इतना की अभी तक
मेरी सांसों में तेरी सांसों की महक है
नहीं इल्तजा खुदा से मुझे कुछ
मुझे रात दिन बस तेरी ही तलब है
नहीं बोझ मेरे लिए प्यार ये तेरा
देख मेरी आँखों में तेरी ही चमक है
बातें हैं तेरी इतनी प्यारी
जैसे मेरी चूड़ियों की खनक है
जानती हूँ ये ज़िन्दगी है ऐसी
जैसे कोई लम्बी सड़क है
पर तू जो है साथ मेरे
तो ज़िन्दगी जीने का हक़ मुझे है
--------- रमा शर्मा
Well done job of creating this blog rama.. Nice poem.. all the best
ReplyDelete