शहीद
ना दिया है विश्राम हाथों को कभी
ना मैं कभी पैरों से लंगड़ाया हूँ
माना कि माँ ,मैं तुझे कुछ ना दे सका
पर भारत माता को गौरव दे आया हूँ।
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
तू ना कहती थी , देखा नहीं कई दिनों से मुझे
देख , आज हर टीवी चैनल पर मैं ही मैं छाया हूँ
साथ अपने घर कुछ ना ला सका तो क्या ,
बदन पर अपने अनमोल तिरंगा पहनकर आया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
रोटी नहीं खायी मैंने अरसों से तो क्या
बन्दूक की गोलियां सीने पर खाकर आया हूँ
पानी से कब बुझी है प्यास मेरी
मैं तो दुश्मन का खून पीकर आया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
दुश्मनो को मौत की नींद सुलादी मैंने
क्या हुआ जो खुद महीनों से नहीं सो पाया हूँ
अब तो तेरी पुचकार भी नहीं जगा सकती मुझको
मैं इतनी गहरी नींद लेकर आया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
मेरी पत्नी को मैं कोई ख़ुशी ना दे सका तो क्या
देश के लिए विजय हासिल करके आया हूँ
उससे कहना , भर लेगी मांग सुरख आज
मैं सिंदूर नहीं , दुश्मन का लहू लाया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
अपने बच्चों के भविष्य मैं सुरक्षित कर ना सका
पर पूरे देशवासियों को सुरक्षित कर आया हूँ
उनको कहना मेरा नाम अब गर्व से बताएं
मैं मेरे नाम के साथ 'शहीद ' लगाकर आया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
हुए अठारह वर्ष , तुम सबसे विदा लिए हुए
हर विजय दिवस पर मैं सबकी आंखों में टिमटिमाया हूँ
वैसे तो आदत है इस दुनिया को , भूल जाने की
इसलिए अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाकर आया हूँ
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।
जय हिन्द। जय भारत।