Wednesday, 26 July 2017

Shaheed- A SALUTE TO MARTYRS on VIJAY DIVAS

            शहीद


ना दिया है विश्राम हाथों को कभी 
ना मैं कभी पैरों से लंगड़ाया हूँ 
माना कि माँ ,मैं तुझे कुछ ना दे सका 
पर भारत माता को गौरव दे आया हूँ। 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ। 

तू ना कहती थी , देखा नहीं कई दिनों से मुझे 
देख , आज हर टीवी चैनल पर मैं ही मैं छाया हूँ 
साथ अपने घर कुछ ना ला सका तो क्या ,
बदन पर अपने अनमोल तिरंगा पहनकर आया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

रोटी नहीं खायी मैंने अरसों से तो क्या 
बन्दूक की गोलियां सीने पर खाकर आया हूँ 
पानी से कब बुझी है प्यास मेरी 
मैं तो दुश्मन का खून पीकर आया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

दुश्मनो को मौत की नींद सुलादी मैंने 
क्या हुआ जो खुद महीनों से नहीं सो पाया हूँ 
अब तो तेरी पुचकार भी नहीं जगा सकती मुझको 
मैं इतनी गहरी नींद लेकर आया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

मेरी पत्नी को मैं कोई ख़ुशी ना दे सका तो क्या 
देश  के लिए विजय हासिल करके आया हूँ 
उससे कहना , भर लेगी मांग सुरख आज 
मैं सिंदूर नहीं , दुश्मन का लहू लाया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

अपने बच्चों के भविष्य मैं सुरक्षित कर ना सका 
पर पूरे देशवासियों को सुरक्षित कर आया हूँ 
उनको कहना मेरा नाम अब गर्व से बताएं 
मैं मेरे नाम के साथ 'शहीद ' लगाकर आया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

हुए अठारह वर्ष , तुम सबसे विदा लिए हुए 
हर विजय दिवस पर मैं सबकी आंखों में टिमटिमाया हूँ 
वैसे तो आदत है इस दुनिया को , भूल जाने की 
इसलिए अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाकर  आया हूँ 
क्या हुआ जो पैरों पर चलकर नहीं 
मैं चार कंधों पर लेटकर आया हूँ।

जय हिन्द। जय भारत। 


Saturday, 15 July 2017

'CHAHAT'

''चाहत ''

थोड़ी चाहत है आसमाँ छूने की 
थोड़ा धरती का बिछौना चाहती हूँ 
सोचूँ पा लूँ थोड़े मोती, थोड़ा सोना चाहती हूँ 
पर इन सबसे ज्यादा तेरे दिल का कोना चाहती हूँ 
बस ज़िन्दगी भर के लिए तेरी होना चाहती हूँ। 
थोड़ी चाहत है तुझे पा लेने की 
थोड़ा तुझ संग मैं रहना चाहती हूँ 
छीन लूँ तेरा हर गम तुझसे 
तुझे अपनी हर खुशी देना चाहती हूँ 
क्योंकि मैं तेरी होना चाहती हूँ। 
थोड़ी चाहत है तुझे हँसाने की 
थोड़ा तेरी बातों पर हँसना चाहती हूँ 
चाहूँ उबारना तुझे हर गम से 
तेरे आँसुओं से अपनी पलकें भिगोना चाहती हूँ 
मैं तेरी होना चाहती हूँ।  

थोड़ी चाहत है तेरे दिल में बस जाने की 
थोड़ा तुझे मेरे  दिल में रखना चाहती हूँ 
कुछ तू सजाये तेरे दिल में मुझे 
कुछ मैं तेरे लिए संवरना चाहती हूँ 
मैं तेरी होना चाहती हूँ। 
चाहती हूँ तेरे कुछ पल चुराना 
अपना हर पल तुझे देना चाहती हूँ 
कुछ नहीं चाहती इस ज़िन्दगी से मैं 
बस मरने तक तेरी बाहों में सोना चाहती हूँ 
क्योंकि मैं तेरी हूँ और बस 
तेरी रहना चाहती हूँ 
तेरी होना चाहती हूँ। ..... 

Friday, 7 July 2017

Tere Bin




तेरे बिन

पहले सा हसीन है हर मंजर अब भी
पहले जैसे ही हैं दिन रात तेरे बिन
पर एक कसक सी है दिल में हर पल
आ सुन क्या है, मेरे दिल के हालात, तेरे बिन।

रहती हूँ खोयी-खोयी सी तेरी यादों में कहीं
ना है होंठों को मुस्कुराने की, इज़ाज़त तेरे बिन 

छूकर गुज़र गया तेरा साथ , एक हसीं ख्वाब की तरह
अब सिर्फ हवाएँ करती हैं मुझसे शरारत तेरे बिन।

नज़रें टिकी रहतीं हैं कैलेंडर पर हर पल
बरस जैसा है गुज़रता , हर दिन तेरे बिन
चुभती है घड़ी की सुईयां दिल में कांटे बनकर
क्योंकि कम्बख्त वक़्त भी तो नहीं कटता तेरे बिन।

उलझ जाती हूँ ख्यालों के उधेड़बुन में कभी
कभी ये तन्हाई कहर ढाती है तेरे बिन
कोसों का है फासला, आंखों से नींद का
बिन सोये कईं रातें गुज़र जाती है तेरे बिन।


खिलती हैं कलियाँ, यहाँ भी गुलिस्ताँ में
पर नहीं कोई भी मंज़र, मनभावन तेरे बिन
यूँ तो होती है आज भी, बरसात वैसे ही झूमकर
पर मुझे कहाँ भिगो पाता है ये सावन तेरे बिन


रहती है एक नाकाम सी कोशिश , तुझे ना याद करने की
तभी साथ बिताया हर लम्हा, आँखों में घूम जाता है तेरे बिन 
वैसे तो कुछ भी हसीन नहीं है , यहाँ अरसों से
बस कभी कोई प्यारा सा सपना पलके चूम जाता है तेरे बिन। 

आईने से रूबरू होने का सिलसिला अब कहाँ
होती है दीवारों,तस्वीरों और पर्दों से बात तेरे बिन
बस तेरा ही अक्स रहता है हर पल ज़हन में
खुद से कहाँ होती है अब मुलाकात तेरे बिन।

रहता है इंतज़ार बस तेरे दीदार का
मिलन की आस का दिया जला लेती हूँ तेरे बिन
नहीं हैं निशाँ और किसी रौशनी का
तेरे साथ होने का झूठा एहसास खुदको
दिला देती हूँ तेरे बिन।


तू है तो धड़कता है , ये दिल भी वक़्त पर
नहीं तो रुक जाती है , इसकी हरकत तेरे बिन
तुझसे ही है मेरा अस्तित्व, मेरा वजूद और मैं
वरना नहीं है मुझे , जीने की हसरत तेरे बिन।

यूँ तो मौसम आते हैं अब भी बहारों के
पर कोई मौसम कहाँ है भाता तेरे बिन
हो गयी है इंतहा मेरे इंतज़ार की कुछ यूँ
कि अब तो जिया भी नहीं जाता तेरे बिन।

तेरे बिन ......



Corona alias CoVid-19

कोरोना   कोई कहे कोरोना, किसीने कोविड  कहा है   इसकी बेरहमी को पुरे विश्व ने सहा है  हम सुरक्षित तभी तक है, घरों में जब तक हैं   ...