Tuesday, 27 June 2017

Sath ho tera...

                                           साथ हो तेरा

मैं हूँ अर्धांगिनी तेरी, तू आधा अंग है मेरा
हूँ इंद्रधनुष मैं बरसातों का, तू हर रंग है मेरा
तुझसे ही है राहत ज़िन्दगी में
तुम बिन तूफानों का हिलोरा
तूफानों में भी मिल जाए साहिल मुझे
जो उम्र भर साथ हो तेरा।



 तुझसे ही है हर शाम, तू ही मेरा सवेरा
तेरी साँसों में साँसें  मेरी, तेरे दिल में मेरा बसेरा
तेरे होने से ही है हर पल रोशन
तुम बिन घनघोर अँधेरा
अंधेरों में भी भर जाए रोशनी की जगमग
जो उम्र भर साथ हो तेरा।

आँखों में आँखें तेरी, हर चेहरे में तेरा चेहरा
गर मैं हूँ जमीं तो तू आसमाँ सुनहरा
तू है तो है खुशनुमा हर मंज़र
तेरे बिन खामोशियों का पहरा
ख़ामोशी भी बदल जाए मुस्कराहट में
जो उम्र भर साथ हो तेरा।



तूने ही उड़ाई नींदें मेरी, तू ही मेरे दिल का लुटेरा
तुझसे ही शुरू मेरी दुनिया, तुझपर ही वक़्त आके ठहरा
तुझसे ही है मेरी चुडियों की खनक, पायल की छनक
तुझसे ही है मेरे सिंदूर का रंग गहरा
रंग डालूं खुद को तेरे ही रंग में
जो उम्र भर साथ हो तेरा।

तू ही तो मकसद है ज़िन्दगी का मेरा
तू मेरा चाँद, मैं तेरा पागल चकोरा
नहीं लगते सपने सुहाने अब मुझे
सपनों से भी प्यारा हमदम है मेरा
सपनों सी हसीं हो जाए दुनिया मेरी
जो उम्र भर साथ हो तेरा।
........ बस साथ हो तेरा।






Sunday, 25 June 2017

Father's Day

                 फादर्स डे

आज मैंने एक बूढ़े आदमी को ठेला चलाते देखा 
मस्तिष्क ने मुझे सोच की गहराइयों  में जा फेंका 
उम्र होगी कोई पचपन साल 
धीमी धीमी सी थी उसकी चाल 
उसके वजन से भारी उसका ठेला था 
लगा जैसे उसने इस उम्र में बहुत कुछ झेला था। 



उसे देखकर मुझसे रहा न गया 
दिल और दिमाग कुछ बौरा सा गया 
मैंने झिझकते हुए उसकी ओर कदम बढ़ाया 
वो भी मुझे अपनी ओर आता देख सकुचाया 
उसे लगा मैं वहां कुछ खरीदने हूँ आयी 
किन्तु मैंने तो सवालों की कुछ यूँ झडी  लगायी। 



मैंने पूछा-" बाबा, आप इस उम्र में क्यों बाहर आते हो?
क्यों इतनी गर्मी में अपने वृद्ध शरीर को सताते  हो?
क्या आपके बेटे-बेटी नहीं, जो आप अब भी कमाते हो ? "
वह भलमानस दो पल को निशब्द हो गया 
आंखें चुराते हुए कुछ ख्यालों में खो गया। 



मेरा सवाल उसे भीतर तक झिंझोड़ गया 
और उसका जवाब मेरा दिल तोड़ गया 
जवाब कुछ यूँ था- " बेटा , इस उम्र में कमाना मेरी मजबूरी है 
क्योंकी रोटी, कपडा और मकान हम सबके लिए ज़रूरी है। 
बेटे तो मेरे चार-चार है पर  सारे मेरे लिए बेकार है। 



कोई अपनी ज़िन्दगी की उलझनों में व्यस्त है
तो कोई विदेश में अपने बीवी-बच्चों के साथ मस्त है 
मेरी बूढी पत्नी है घर में , जिसके लिए में हूँ कमाता 
हमारे बेटों का अब नहीं है हमसे कोई नाता 
ये सब सुनकर मेरी आँख भर आयी 
अपना भविषय प्रत्यक्ष देखकर मैं घबरायी। 




दिल में फिर एक ख्याल आया 
कुछ दिन पहले ही हमने फादर्स डे है मनाया 
सोशल मीडिया पर सबने अपने पिता की तस्वीर लगाई 
किसीने कहा ' पापा यु आर ग्रेट'
तो किसीने अपने पिता के लिए कविता रचाई। 



कब तक हम ये दोगलापन दिखाएंगे 
क्या सारा प्यार सोशल मीडिया पर ही दिखाएंगे ?
ऐसे ही कही विचारों से मेरा सर चकराया 
दिल में सवालों का सैलाब उमड़ आया 
समाज का खोखलापन है सत्य , या फिर भ्रम है 
क्यूँ पूर्ण गति से बढ़ रहे वृद्धाश्रम है। 




जिन माँ-बाप ने दिया है हमें जीवन 
क्यूँ झेल रहे हैं वे आज अकेलापन 
हमारी हर लड़खड़ाहट पर जिन्होंने हमें अपना हाथ दिया 
हर मक़ाम पर उन्होंने हमारा साथ दिया 
हमने उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें मायूस छोड़ दिया
क्यूँ उनके ही बच्चों ने उनका दिल तोड़ दिया। 





जिनकी ऊँगली पकड़कर हमने चलना सीखा 
क्यू उनकी व्हीलचेयर आज हमसे पकड़ी नहीं जाती 
जिनके साथ की हमने जीवन की शुरुआत 
क्यूँ उनके साथ अब हमें ज़िन्दगी रास नहीं आती 
क्या उन विशेष लोगों के सम्मान के लिए विशेष दिन की ज़रूरत है 
जिनकी वजह से हमारा वजूद , हमारी इज़्ज़त है। 



मैं यह नहीं कहती कि ये विशेष दिन मत मनाओ 
माँ-बाप क लिए प्यार मत दर्शाओ 
बस इतना सा अनुरोध है मेरा सबसे 
कि जिनसे हमने जन्म लिया 
उन्हें वृद्धाश्रम का रास्ता मत दिखाओ। 




  








Thursday, 15 June 2017

Ye Mausam ki BAARISH , Ye BAARISH ka paani, ye paani ki bundein tujhe hi to dhundhe......

               बरसात 

आज फिर से बरसात आयी

फिर वो काली घटा छायी
फिर झूमी वो बावली वादियां
सीने में उठी फिर से कसक
फिर से पगली पवन लहराई
आज फिर तेरी याद आयी।

याद आया वो पहला सावन
वो मनचली लहरें, वो फूलों का मिलन
वो कलरव करते पंछी, वो खुशबु बिखेरती
गुलाबी कलियाँ याद आयी
फिर ये कम्बख्त मिटटी पथराई
आज फिर तेरी याद आयी।

याद आयी सौंधी सौंधी मिटटी की महक
वो भंवरों की चंचल चहक
कुछ यूँ तड़पे भँवरे कलियों के लिए
की तड़प उठा मेरा पागल मन भी
फिर दिल में सरसरी भर आयी
आज फिर तेरी याद आयी।





काश ये सावन यूँ ही बार बार आए
हर दिल में प्यार भर जाए
मैं कुछ यूँ तड़पूं तेरे प्यार में
की हर दिल किसीके लिए तड़प जाए
फिर ये दुआ मेरे दिल में आयी
क्योंकि आज फिर तेरी याद आयी।

                               ----------  रमा शर्मा

Saturday, 10 June 2017

Bachpan kaa sawan, Wo kagaz ki kashti, Wo baarish ka paani!!!!!



काश में अपना बचपन न खोती 

आज २३ साल बाद खदु से हूँ मैं कहती 
जब दुनिया की भीड़ में हूँ बहती 
थम जाता ये वक़्त वहीँ पे कहीं 
ना समय चक्र चलता ना मैं बड़ी होती 
काश मैं अपना बचपन न खोती। 

कभी खिल उठती गुड्डे गुड़िया देखकर 
कभी आंसुओं से पलकें भिगोती 
ना होती जरुरत किसी वजह की 
पल भर में हंसती, पल भर में रोती 
काश.... मैं अपना बचपन ना खोती  

कभी भागती चिड़िया के पीछे 
कभी सबको अपने पीछे भगाती 
कभी चलती पापा का हाथ थामे 
तो कभी मम्मी की गोदी में सोती 
काश... मैं अपना बचपन ना खोती 

कभी रूठकर अपने घर से निकलती 
खेतों में जाकर तितली पकड़ती 
आज जैसी ना होती मुझमें अकड़ 
पापा की एक पुचकार से सब कुछ मैं भूली होती
काश...मैं अपना बचपन ना खोती 

ना होता दिल में कोई छलावा 
ना आधुनिकता के मुखोटे से चेहरा छुपाती 
होता वही बारिश का पानी 
पर नाव सिर्फ कागज़ की होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

कक्षा में प्रथम आने की चिंता ना होती 
भविष्य के बस ख्वाब संजोती 
ना होता परीक्षा नज़दीक आने का डर 
पढाई का इतना बोझा ना ढोती 
काश में अपना बचपन ना खोती 

ना प्रतियोगिता की ऐसी लगन मुझमें होती 
ना कभी कक्षा में मैं सोती 
ना ही होती इतनी मोटी किताबें 
दादी - नानी की कहानी की सीखों में खोती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

ना होते कोई गिले शिकवे 
ना खुदको हर पल दुनिया से डराती 
ना मुश्किल होता मेरे लिए कोई काम 
सागर में जाकर ढूंढ लाती सीपी से मोती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

दुनिया की मुझमे समझ ही ना होती 
बस रिश्तों को फूलों की माला में पिरोती 
खुलकर जीती अपनी ये ज़िन्दगी 
इस समाज की मुझे परवाह ना होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

खुश होने का ना कोई मौका गंवाती 
ना अपने अरमां कोई दिल में दबाती 
आज भी अगर जीती कुछ  यूँ ही मैं ज़िन्दगी 
तो सीने में कोई कसक सी न होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

काश मैं अपना बचपन ना खोती !!!
                 ----------रमा शर्मा 


Thursday, 8 June 2017

MUJHE HAQ HAI!!!

        मुझे हक़ है 

ना  मंज़िल अलग है , ना राहें अलग है
बस हमारे लिए, तुम्हारी निगाहे अलग है
और इन्ही निगाहों में मेरी ज़मी और फलक है
तूने प्यार दिया मुझे इतना की अभी तक
मेरी सांसों में तेरी सांसों की महक है
नहीं इल्तजा खुदा से मुझे कुछ
मुझे रात दिन बस तेरी ही तलब है
नहीं बोझ मेरे लिए प्यार ये तेरा
देख मेरी आँखों में तेरी ही चमक है
बातें हैं तेरी इतनी प्यारी
जैसे मेरी चूड़ियों की खनक है
जानती हूँ ये ज़िन्दगी है ऐसी
जैसे कोई लम्बी सड़क है
पर तू जो है साथ मेरे
तो ज़िन्दगी जीने का हक़ मुझे है

                    ---------  रमा शर्मा 

Corona alias CoVid-19

कोरोना   कोई कहे कोरोना, किसीने कोविड  कहा है   इसकी बेरहमी को पुरे विश्व ने सहा है  हम सुरक्षित तभी तक है, घरों में जब तक हैं   ...