Saturday, 10 June 2017

Bachpan kaa sawan, Wo kagaz ki kashti, Wo baarish ka paani!!!!!



काश में अपना बचपन न खोती 

आज २३ साल बाद खदु से हूँ मैं कहती 
जब दुनिया की भीड़ में हूँ बहती 
थम जाता ये वक़्त वहीँ पे कहीं 
ना समय चक्र चलता ना मैं बड़ी होती 
काश मैं अपना बचपन न खोती। 

कभी खिल उठती गुड्डे गुड़िया देखकर 
कभी आंसुओं से पलकें भिगोती 
ना होती जरुरत किसी वजह की 
पल भर में हंसती, पल भर में रोती 
काश.... मैं अपना बचपन ना खोती  

कभी भागती चिड़िया के पीछे 
कभी सबको अपने पीछे भगाती 
कभी चलती पापा का हाथ थामे 
तो कभी मम्मी की गोदी में सोती 
काश... मैं अपना बचपन ना खोती 

कभी रूठकर अपने घर से निकलती 
खेतों में जाकर तितली पकड़ती 
आज जैसी ना होती मुझमें अकड़ 
पापा की एक पुचकार से सब कुछ मैं भूली होती
काश...मैं अपना बचपन ना खोती 

ना होता दिल में कोई छलावा 
ना आधुनिकता के मुखोटे से चेहरा छुपाती 
होता वही बारिश का पानी 
पर नाव सिर्फ कागज़ की होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

कक्षा में प्रथम आने की चिंता ना होती 
भविष्य के बस ख्वाब संजोती 
ना होता परीक्षा नज़दीक आने का डर 
पढाई का इतना बोझा ना ढोती 
काश में अपना बचपन ना खोती 

ना प्रतियोगिता की ऐसी लगन मुझमें होती 
ना कभी कक्षा में मैं सोती 
ना ही होती इतनी मोटी किताबें 
दादी - नानी की कहानी की सीखों में खोती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

ना होते कोई गिले शिकवे 
ना खुदको हर पल दुनिया से डराती 
ना मुश्किल होता मेरे लिए कोई काम 
सागर में जाकर ढूंढ लाती सीपी से मोती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

दुनिया की मुझमे समझ ही ना होती 
बस रिश्तों को फूलों की माला में पिरोती 
खुलकर जीती अपनी ये ज़िन्दगी 
इस समाज की मुझे परवाह ना होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

खुश होने का ना कोई मौका गंवाती 
ना अपने अरमां कोई दिल में दबाती 
आज भी अगर जीती कुछ  यूँ ही मैं ज़िन्दगी 
तो सीने में कोई कसक सी न होती 
काश मैं अपना बचपन ना खोती 

काश मैं अपना बचपन ना खोती !!!
                 ----------रमा शर्मा 


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