आज़ादी
काश मेरा देश आज सच में आज़ाद होता
होते हम आज़ाद हमारी ग़ुलाम सोच से
ना होते हिन्दुओं के दंगे,ना मुस्लिमों का जिहाद होता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होता धर्म के नाम पर संहार
ना मंदिर मस्जिद के नाम पर बवाल होता
ना होता कोई हिंदू ना कोई मुस्लमान
हर दिल में इंसानियत का ख्याल होता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होती ये ग़रीबी,ये भुखमरी,ये लाचारी
ना कोई फुटपाथ पर कभी सोता
होता सबको बराबर शिक्षा का हक़
ना कोई बच्चा कचरे के थैले का बोझ ढोता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होता बेटे-बेटी में कोई भेदभाव
हर घर में खुशियों का फ़ूल खिलता
होता हर मासूम को इस दुनिया में आने का हक़
ना कोई किसी माँ की कोख कुचलता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होता देवी रुपी किसी औरत का तिरस्कार
ना कोई शरीर अपनी अस्मिता खोता
होता हर स्त्री का अपना अस्तित्व
हर बलात्कारी बस मौत की नींद सोता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना दीवारों पर होते पान के छींटे
ना हमारा वातावरण गंदा होता
ना होती आवश्यकता किसी सफाई अभियान की
अगर आम इंसान ये सब करके शरमिंदा होता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होता किसीका भविष्य रिजर्वेशन के अधीन
ना कोई SC,ST का कोटा होता
होती क़द्र तो बस हुनर की
ना कोई युवा घर बेरोजगार लौटा होता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।
ना होती लहूलुहान ये जमीं
ना रुसवा ये आसमान होता
होता बस प्रेम और भाईचारा
और मेरे सपनों का हिंदुस्तान होता
काश मेरा देश सच में आज़ाद होता।